“वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई "मनु" को समर्पित"
“प्रणाम”

मै प्रणाम करती हूँ,मै प्रणाम करती हूँ,
उस नारी श्रेष्ठ - उस अबला को ,
 उस ज्वाला को उस चपला को,
उस माटी की रखवाली को,
उस माँ की प्रस्वानुभूतक को !

जिसने रज का कर मन से ध्यान ,
रज्जू से बाँध स्वयं प्राण,
अन्तिम प्रणाम कर माता को,
ले चरण धूलि चन्दन समान !

सिहंनी के रुप गर्जन करती,
वायु भरती प्रलय नाद,
केवल मातृत्व हितार्थ ही,
प्राणदान करती है !

मानवता की उस देवी को ,
उस स्वाभिमान की सृष्टि को ,
मन में ध्यान करती हूँ ,
मैं प्रणाम करती हूँ !
(युद्ध के लिये प्रस्थान)

गरल अश्रु क्रोध जलधि का रूप ,
हर श्वास प्रलय का अग्निशमन,
यम के समान धारण कर अश्व ,
हरने क प्राण चलती है !

 

घुस गयी दुष्टों के बीच जब ,
काली स्वरूप धारण करके,
जिस ओर खडग को लहराया ,
उस ओर हवा में मुण्ड उछले !

इस ओर मृत्यु उस ओरमृत्यु,
टिड्डों के प्राण बचने थे कठिन,
हाथों में कहाँ थीं तलवारें,
अब प्राण बचाकर भागर हे!

जिस रूप के नीचे शिव लेटे,
 उसको क्या भुरण्डे सह पाते,
उनके उस रूप को मन धार,
दुष्टों के नाश हेतू विशेष,
संकल्प धार पर चलती हूँ ,
मैं प्रणाम करती हूँ !

ज्वाला का न कोई वार संभला ,
जब मची प्रलय रंगरूटों में,
तब वरदानित छल बाहर ला,
छलियों ने सिहँनी के पीछे से,
वार किया रज्जू पर!

प्राण दीप को पृथक देख,
माता मन सहसा रूदित हुआ ,
अवसर का लाभ ले दुष्ट उछले,
गुट बना कपट से वार किया !

लहू से लतपथ हो गयी सिहँनी,
 पर खडग न हाथों गिराती,
लतपथ भी खडग लिये यूँ झूम रही,
साक्षात मृत्यु को बाँट रही!

जब तक थी रक्त की रोष बूँद,
माता के लिये वो लडती रही,
फिर धरती माँ के आँचल में,
गिर पडी खडग लेकर बेटी !

 

 

मेरा मन सहसा बोल उठा,
धन्य धन्य हे धन्य "लक्ष्मी"!!!
बलिदानों के अश्रु जलधि से सिंचित ,
मातृभूमि के गर्वित वातावरण में,
तुमको मैँ ध्यान करती हूँ,
मैं प्रणाम करती हूं,
मैं प्रणाम करती हूं !!!!
 “वन्दे मातरम्”

Akanksha Singh
MBA-IT, 1st Year,
IIITA