क्या पेश करूँ नज़राना अपनी वफ़ादारी का,
और क्या अपनी ईमानदारी का सबूत दूं,
जो तू है….
बेमतलब से लगते हैं सारे, जो तू है…
पास होने पे तेरे एक सुकून है,
हैं दूर होने पे बेचैनियाँ,
एहसास है, एक हमसफर है अपना, जो तू है…
कितनी आसानी से तोड़ जाते हैं लोग रिश्ते दिलों के,
दिलों के साथ भरोसा और हौसला भी तोड़ जाते हैं अपनो के,
ये धागे इतने भी कच्चे नही हैं, जो तू है…
कुछ वार हुए हैं होने पे मेरे,
ज़ख़्म भी हुए है मेरे हौस्लो पे कुछ,
नज़रें तेरी मल्हम सी लगती हैं,
और छुवन तेरी एक जादू सी,
मिटने लगे हैं वो घाव भी जो तू है…
तेरे वादे देते हैं भरोसा, तेरी ना करती है चोट,
पर तेरी ना भी एक भरोसा जागती है,
की अभी भी मै हूँ जो तू है…
चाहता तो हूँ तुझमे एक साथी,
एक हमराज़, एक हमसफ़र, एक हमराही,
लगता है की वो है, जो तू है…
Written By:
Punit Singh(MTech 1st year)
PIS2015001
IIIT Allahabad
adminAbhivkyakti
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