आंधी आ रही हैं | कुछ पत्ते उड़ चले हैं, कुछ पेड़ गिर रहे है, और कई स्तम्भ धराशाई हो रहे हैं | चीटियों के घरो से आम के पेड़ तक जाती वह कतार कहीं खो सी गयी है | आंधी आ रही है | घोड़े हिनहिना रहे हैं | पेड़ों के झुरमुठ में बैठे पंछी कब के उड़ चले हैं |पेड़ों के पत्ते उनके जाने का शोक, इस आंधी को कोसकर मना रहे हैं | आंधी जा चुकी हैं | पसरा हैं बस सन्नाटा |कहीं शोक और विषाद का सन्नाटा हैं, तो कहीं विकास और नवनिर्माण का मौन |पंछी घरौंदों में लौट चुके हैं, और मैं उनकी मौन करुना का साकी हूँ |पानी तो बह चूका हैं, पर उसमे घुली अगणित अवसाद और विषाद का साथी हूँ, मैं | पेड़ों की डालिओं के बिच बैठी हूँ, तो कहीं टूटे घरो के रौशनदान से झाँक रही हूँ |

इस आंधी के गूढ़ में तीन कारण, जिनमे से दो दृष्टिगोचर होते प्रतीत हो रहे हैं | पहला पतन या विघटन के फलस्वरूप आई इस आंधी का स्वरुप (प्रमुखतः धार्मिक भावों के विघटन से आये परिवर्तन ) अत्यंत ही विरल होता जा रहा है | दूसरा चक्रीय परिवर्तन का दौर, परन्तु इसकी समय सीमा अत्यंत की दीर्घ होने के कारन इस स्वरुप को भी गौण होना पड़ रहा हैं | तीसरी पद्धिति है सतत विकास का, जिसके भाव को हम सब ने खुले दिल से स्वीकार किया है | औद्योगिकीकरण के साथ आई विकास की पृष्ठभूमि में चल रहे सामाजिक परिवर्तन adam smith और john miller के सिधान्तों का सम्पोषण करते रहे हैं |.

भारत भी इस दौर में सबकी भीड़ का भागिदार बना रहा |1848 में गुजरात दे शुरु इस बयार ने देश में नयी उर्जा का संचार किया | महिलाओं के के लिए 1884 में महाराष्ट्र में डेक्कन शिक्षा समाज का गठन हुआ | तदोपरांत देश के भिन्न- भिन्न क्षेत्रो में अगणित आन्दोलन हुए | 1897 में रामकृष्ण मिशन, फिर आर्य समाज ,फिर 1908 में सेवा सदन सभी ने रजा राम मोहन रॉय के बोये हुए बीज को सीचा और पोषित किया |फिर भी समाज में असंतुलन व्याप्त रहा | महिलाओं को सामान अधिकार की बात आज भी की जा रही हैं | आज भी सदन में महिलाओं के अधिकारों का बिल पास नहीं हुआ हैं |

फिर भी इन सभी बातो से एक परिकल्पना स्पष्ट हो जाती है की, यदि किसी भी वर्ग समूह का यदि ईश्वरीकरण किया जाता है तो समय के साथ उनको नहीं तो सर्वश्रेष्ठ घोषित किया जाता है नहीं तो सबसे निचला |इसीलिए समाज में किसी वर्ग को अपने समक्ष बनाने से ही समानता और सौहार्द आएगा |आज क्रांति इसी बात पर टिकी हैं |

Ravi Shankar mehta
Iec2014087@iiita.ac.in

adminVibes
आंधी आ रही हैं | कुछ पत्ते उड़ चले हैं, कुछ पेड़ गिर रहे है, और कई स्तम्भ धराशाई हो रहे हैं | चीटियों के घरो से आम के पेड़ तक जाती वह कतार कहीं खो सी गयी है | आंधी आ रही है | घोड़े हिनहिना रहे हैं...