AB KAUN PARIKSHA LEGA MERI……
अब कौन परीक्षा लेगा मेरी,
क्या वो जिससे है कटुता मेरी,
या शायद वो जिससे सब मांगूं,
या वो जिससे हैं खुशियाँ मेरी |
न जानो यह कम जोर प्राण हैं,
ज्वलित हृदय यह तार तार है,
दृढ़निश्चय है मेरे मन का,
आग छुपी भोलेपन की आड़ है |
बरसेगी ये संकल्पों की बदरी,
हृदय पिपासा अब कितनी गहरी,
बदलने को ये जीवन अपना,
अब पलटूगां तूफानों की गगरी |
जला सभी चंचल तस्वीरे,
तोड़ कर ये निर्बल जंजीरे |
निकल जाऊंगा महायज्ञ पर,
बदलने अपनी हस्त लकीरे |
छटी अज्ञान की निशा घनेरी,
अब जाग उठी है आत्मा मेरी,
वो चार कदम पर मंजिल मेरी,
अब कौन परीक्षा लेगा मेरी |
Atul Kumar Verma
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