DOR YE KITNI NIRBAL NIKLI…

डोर ये कितनी निर्बल निकली,

भाव सरिता ये कितनी छिछली |

भूल के सारी यादे पिछली,

रस खत्म पुष्प से उड़ गयी तितली |

मन क्यों लांघे तुच्छ सीमाए,

हैं बंधी हुयी अब भी आशाएं |

अब तो कोई अपराध बताये,

जिस की खातिर मिली सजाएं |

क्या दर्शाने को जीवन नीरसता,

रची है तुने संसारिकता |

मन में अब छाई क्यों जड़ता,

क्यों मिथ्या सपनो का पीछा करता |

खोया है जो कैसे पाऊं मैं,

अंतर है साफ़ कैसे दिखाऊँ मैं |

ईश को अपने पास चाहूँ मैं,

अंतर्द्वंद निशा मेंऔर किसे जगाऊँ मैं |

करुण जल धार नेत्रों सेनिकली,

इस द्रिढ़ ह्रदय से भी ना संभली |

जुड़ी है जिससे सांसे अगली ,

डोर ये कितनी निर्बल निकली |

 

Atul Kumar Verma
iit2012036@iiita.ac.in