वो एक नींद
वो एक नींद का झोका जिसने पढ़ने से रोका…
चला आया मेरी आँखों में पाकर थोड़ा मौका….
वो एक नींद का झोका……
कथित अक्षर किताब के हुए धुंधले से थोड़े….
मै भी बैठा था पढ़ने ठंढ में कम्बल को ओढ़े…
भगा रहा था नींद को ब मुस्किल भौं सिकोड़े….
मगर थी नींद की मिन्नत आने को हाथ जोड़े…
गिरा जो मै किताब पर चोट, से थोड़ा चौका ….
वो एक नींद का झोका जिसने …….
अजीब है कहानी नींद की भी क्या बताऊँ….
जब कोई काम न हो तब नहीं कहती है आऊँ…
पढाई कैसे करू कैसे कहु कहा जाऊ …..
परीक्षा की घडी है नींद को कैसे भगाऊं….
आप ही कुछ कहो ,दो, जगने का हो कोई नुस्खा….
वो एक नींद का झोका जिसने …….
बृजेश अवस्थी….
https://bcognizance.iiita.ac.in/archive/nov-15/?p=55AbhivkyaktiBrijesh Kumar Awasthi
IMP2014002