लिखूं मैं
कँवल लिखू गजल लिखू या गाना लिखू मैं।
या उसे छेड़ने का कोई बहाना लिखू मैं।
मुझसे अक्सर ही, वो करता है शिकायत मेरी।
मुझसे फिर रूठ जाना और मनाना लिखू मैं।
लिखू गुस्से में ऐसे मु न बनाया करो तुम।
लिखू के दुसरो की बातो में न आया करो तुम।
लिखू के मुझसे ऐसे रूठ न जाया करो तुम।
लिखू अकेले ही बाजार न जाया करो तुम
लिखू की इतने भी न चॉकलेट खाया करो तुम।
लिखू के ऐसे भी न भूल ही जाया करो तुम।
उसकी मासूमियत पर एक ताराना लिखू मै।
मुझसे फिर रूठ जाना और मनाना लिखू मै।
लिखू उसे ढंग से कपडे पहनना आता ही नहीं।
घास चरने गया दिमाग लौट आता ही नहीं।
बाल भी तो रहते उसके उलझे उलझे से।
अच्छे से बाल बनाना भी तो आता ही नहीं।
सच कहूँ एक भी ढंग मुझकोे तो भाता ही नहीं।
न जाने इतना फिर भी रौब क्यों,, जाता ही नहीं।
इतना पढ़के उसकी आँखों में रो आना लिखू मै।
मुझसे फिर रूठ जाना और मनाना लिखू मै।
कँवल लिखू गजल लिखू या गाना लिखू मैं।
या उसे छेड़ने का कोई बहाना लिखू मैं।
https://bcognizance.iiita.ac.in/archive/nov-15/?p=57AbhivkyaktiBrijesh Kumar Awasthi
IMP2014002
MBA(IT)-Phd