तर्जुबा
ये लोग तो वही हैं मगर, वो शाम तो नहीं,
ऐसा न हो ये दर्द से अन्जान तो नहीं।
देखो तो जरा सारे पैमाने सजे हैं,
नजरों से उनकी जो पियें, वो जाम तो नहीं।
दौलत तो बहुत है मगर, खर्च कब करे,
शोहरत भी मगर, कहीं आराम तो नहीं।
अब कौन करे प्रेम और दूर हो,
राधा भी नहीं हैं यहाँ, और श्याम भी नहीं।
अब कौन किसी के लिये घर छोड़ता यहाँ,
लड़के तो बहुत हैं मगर कोई राम तो नहीं।
कोई दर्द भला किसी का कोई कैसे समझेगा,
इन्सान हैं यहाँ पे सभी भगवान तो नहीं।।

होश
दो कदम तो चल साथी मुझे होश नहीं,
सारी मय को मुझे पिला दो मुझे होश नहीं।
मेरी हालात की गुनेहगार है वो उसकी नजर,
उसका दीदार करा दो मुझे होश नहीं।
मैने देखा है बदलते हुए लोगों को यहाँ,
कैसे बदलूँगा मैं अब खुद को मुझे होश नहीं।
कोई तो आह मिले जाके उस खुदा को कभी,
आके शायद वो संभालेगा मुझे होश नहीं।
कैसे देखूँगा रिश्तों को बिखरते ’’रानू’’,
चलो अच्छा हुआ है कि मुझे होश नहीं।

उसकी मर्जी
वो चाहे तो जमीं का आसमाँ कर दें,
उसकी मर्जी हो तो शहर को शाम कर दें
और ये तूफान, ये जलजले तो कुछ भी नहीं,
वो चाहे तो जर्रे से कयामत कर दे।
और आज इन्सान इन्सानियत का दुश्मन बन गया,
उसकी मर्जी हो तो सभी को मोहम्मद कर दे।
कहते हैं उनके दिल पर उनकी नजरों का पहरा है,
वो चाहे तो उनके दिल में तेरा घर कर दे।
क्यूँ कहते फिरते हो, वो तुम्हारे नसीब मेें नहीं
वे चाहे तो तेरी मोहब्बत मुकम्ल कर दें।
और मत करो गुजारिश यहाँ किसी से ’’रानू’’
वो चाहे तो तेरी हर दुआ में असर कर दे।


हम सब

क्या हैं आप और क्या हैं हम सब,
उस खुदा की मर्जी के प्यादें हैं हम सब।
ये तो उसने ही बक्शा है कि हम यहां के वाशिंदे हैं,
वरना दर-दर भटकने वाले बन्जारे हैं हम सब।
ल्गता है इस महफिल में आज भी कोई अपना हैं,
वरना देखो तो यहां तन्हा हैं हम सब।
और कौन जाने कि उसकी ख्वाहिशें क्या हैं,
वो मिला दे तो मोहब्बत वरना शायर है हम सब।
चल रही है जिंदगी खुदा के पाक हाथों से,
छूटकर कब बिखर जाये, मिट्टी के खिलौने हैं सब।
कैसे हैं यहाँ हम लोग शार्गिद इन्सान के,
कहता है वो दर्द अपना, और वाह-वाह करते हैं हम सब।
और मत कहो अपने गमों को यहां किसी से ’’रानू’’,
यहाँ हर कोई उदास है, और गमों में हैं हम सब।

वो पल
जब कभी सोचता हूँ उसके बारे में,
गुजरी हुयीं जिंदगी के वो पल हसीन पल,
क्यों गुजरते हैं मेरी आँखों के सामने से,
मैं रोकता हूँ उन लम्हों को कि,
वो वही ठहर जायें प्यारे से पल
लेकिन क्यों दूर हो जाते हैं
प्यारे वो खूबसूरत से पल,
जब कभी देखता हूँ भविष्य के सपने,
तो क्यों याद आते हैं
वो गुजरे हूए पल
क्या अतीत से जुड़ा है भविष्य
या भविष्य से जुड़े हुए हैं वो पल
मैं तो कभी-कभी सोचता हूँ उसके बारे में,
वो तो हमेशा सोचती है मेरे बारे में,
जब याद करता हूँ उसके साथ
गुजरा हुआ बचपन,
तो ऐसा क्यों लगता है,
उससे एक बार कह दूँ
कि माँ फिर से दिला दो
मेरा गुजरा हुआ बचपन
तुम तो कहती थी कि
मै तुम्हे चाँद लाकर दे दूँगी,
मुझे अब फिर से दिला दो।
अपने आँचल की छाँव में
गुजरा हुआ मेरा बचपन।।

Dharmesh Dixit
B.Tech 4rth year
Tulas Institute of Engineering and Management Dhoolkot, Dehradun

adminAbhivkyakti
तर्जुबा ये लोग तो वही हैं मगर, वो शाम तो नहीं, ऐसा न हो ये दर्द से अन्जान तो नहीं। देखो तो जरा सारे पैमाने सजे हैं, नजरों से उनकी जो पियें, वो जाम तो नहीं। दौलत तो बहुत है मगर, खर्च कब करे, शोहरत भी मगर, कहीं आराम तो नहीं। अब कौन...