Daily Archives: April 26, 2015

बीत जाएँगे कल

हम हैं अब यहाँ,

कल ना जाने होंगे कहाँ,

याद आएँगे वो भी रास्ते ,

जो बीत जाएँगे कल यहाँ !

 

मौसम भी सुहावना था,

यादों सा तराना था,

मिल के साथ चले थे हम,

जब ना रास्तों का कोई ठिकाना था !

 

वक़्त जब पास हो,

यारों का भी साथ हो,

एक ख्वाइश रहेगी दिल की मनमें,

की हमारी यारी कभी ना नाश हो!

 

जो था कल यहाँ,

ना आएगा अब यहाँ,

बस एक बार आखें बंद कर याद करना ,

की तेरे साथ वो दोस्त था कहाँ, था कहाँ !!

Tanmay Binjrajka

ज़िंदादिल

एक ज़िंदा दिल की कहानी लिखे जा रहा हूँ,

वक़्त को पीछे छोर्ने की चाह को जिए जा रहा हूँ,

ज़िंदगी में बहुत कुछ है हासिल करने को,

आखों में सपने, और जिगर में तूफान लिए जा रहा हूँ,

 

एक ज़िंदा दिल की कहानी लिखे जा रहा हूँ !

 

मौसम चाहे कितनें भी बदले, पर इरादे ना बदलेंगे कभी,

साथ चाहे जिनका भी छूटे, पर याद रहेंगे वो सभी,

मंज़िल चाहे मिले ना मिले, पावं ज़मीन पर रहेंगे अपने,

चाहे ना दिखे कोई रास्ता आगे, पर हिम्मत ना हारेंगे सपने,

मां के प्यार को, पिता के सम्मान को लिए जा रहा हूँ,

एक ज़िंदा दिल की कहानी लिखे जा रहा हूँ!

एक ज़िंदा दिल की कहानी लिखे जा रहा हूँ!

Tanmay Binjrajka

अबकी जब तुम वापस आओ

अबकी जब तुम वापस आओ, दो नैना भी ले आना
कब से काला देख रहा हूँ, कुछ रंग उठा कर ले आना

धड़कन भी चलती है, जिन्दा भी हूँ, पर कुछ महसूस नही होता
अबकी जब तुम वापस आओ, एहसास उठा कर ले आना

ना जाने क्यू सब भिगा- भिगा है, ये बारिश का मौसम भी जैसे टिक कर बैठा है
अबकी जब तुम वापस आओ, धूप उठा कर ले आना

मुददत का जागा हूँ, मुझ को भी थोडा चैन मिले
अबकी जब तुम वापस आओ, नींद उठा कर ले आना

मेरी सारी अरदासो का इक तू ही तो हासिल है
अबकी जब तुम वापस आओ, फिर जाने को मत आना

Avinash Kumar Singh
avinashkumarsingh1986@gmail.com

मैं अकेला रह गया

ख्वाब, चाहत, ख्वाहिसे, सब छीन के तुम ले गए
मैं यहाँ बाकि अकेला रह गया

शाम तक खेली थी खुशियाँ जिस मकां की ओट में
रात होते ही वहा, गहरा अधेरा रह गया

कहकसा भी अब तरसती चाँद को
अब गगन में बादलों का बस बसेरा रह गया

जिंदगी की ये अमावस और भी लम्बी हुई
जब से अपने दरमियाँ का फासला चौड़ा हुआ

रूह भी अब तो रिहाई मांगती है
यूँ सिसकने का की अब ये, मामला लम्बा हुआ

“पल दो पल का साथ था, ये सोच कर उसे भूल जा
अब फकत ये मान ले, जो भी हुआ अच्छा हुआ “

Avinash Kumar Singh
avinashkumarsingh1986@gmail.com

SAMARPAN

जिंदगी ये तेरी बस तेरी नही,
कोई तुझ से जुड़ा है शायद तुझे खबर नही.
मुस्काए जो मन तेरा तो बेवजह वो हसदे,
जिंदगी सवारने को तेरी जीवन समर्पित कर दे.

स्नेहल हाथ सदा तेरे सरपे फिराए,
चाहे आसमा की ऊचाइयां तू छू जाये.
मौन भाव में सब कुछ तुझे बताये,
काँटों की राह में साथ सदा निभाए.

स्वार्थ नही स्नेह भाव ने उसको बांधा,
तुझ से ही सरस है ये जीवन सादा,
ये प्राण आधा तेरा मेराआधा.
तेरी चिंता मुझको इश्वर से ज्यादा.

अस्तित्व में तेरे अस्तित्व अपना जाने वो,
तू क्या चाहे बिन बोले पहचाने वो.
जितना अपना हैवो सब देने की ठानेवो,
डरना मत तेरे हर शत्रु को जाने वो.

हज़ारगुना प्यार दे जितना तुझे रब दे,
अपने दर्द की फ़िक्र नही वो घाव तेरे भर दे.
मुस्काए जो मन तेरा तो बेवजह वो हस दे,
जिंदगी सवारने को तेरी जीवन समर्पित कर दे.

Atul Kumar Verma
iit2012036@iiita.ac.in

DUKH KE BADAL

दुःख के बादल क्यों नहीं छटते ,
बारिश बनकर आंसू बहते ,
शोक नदी में मेरा मन लहराए,
अमूल्य जीवन यूही डूबा जाये,
सुख का सूरज क्यों है लाचार,
क्यों मूक देखता अत्याचार,
कष्ट पहाड़ हम पर ही ढहते,
हितकारी इश्वर अब क्या कहते,
दुःख के बादल क्यों नहीं छटते ,
बारिश बनकर आंसू बहते |
आशा पक्षी बनकर उड़ गयी,
धैर्य की भी दुर्गति हो गयी,
सहनशीलता अब मरने को है,
जीवन पुष्प अब झड़ने को है,
आत्म चीखे अतिकष्ट आहते,
माया के जाल अब कटते फटते,
दुःख के बादल क्यों नहीं छटते ,
बारिश बनकर आंसू बहते |
काल भाल हर काल खड़ा है,
मन मंदिर पीड़ा में पड़ा है,
अब तो इश्वर तेरा सहारा,
मृत्यु लोक में जीवन हारा,
मोछ चाह में अब नहीं थकते,
नाम राम का रटते रटते ,
दुःख के बादल क्यों नहीं छटते ,
बारिश बनकर आंसू बहते |

Atul Kumar Verma
iit2012036@iiita.ac.in

DOR YE KITNI NIRBAL NIKLI…

डोर ये कितनी निर्बल निकली,

भाव सरिता ये कितनी छिछली |

भूल के सारी यादे पिछली,

रस खत्म पुष्प से उड़ गयी तितली |

मन क्यों लांघे तुच्छ सीमाए,

हैं बंधी हुयी अब भी आशाएं |

अब तो कोई अपराध बताये,

जिस की खातिर मिली सजाएं |

क्या दर्शाने को जीवन नीरसता,

रची है तुने संसारिकता |

मन में अब छाई क्यों जड़ता,

क्यों मिथ्या सपनो का पीछा करता |

खोया है जो कैसे पाऊं मैं,

अंतर है साफ़ कैसे दिखाऊँ मैं |

ईश को अपने पास चाहूँ मैं,

अंतर्द्वंद निशा मेंऔर किसे जगाऊँ मैं |

करुण जल धार नेत्रों सेनिकली,

इस द्रिढ़ ह्रदय से भी ना संभली |

जुड़ी है जिससे सांसे अगली ,

डोर ये कितनी निर्बल निकली |

 

Atul Kumar Verma
iit2012036@iiita.ac.in

AB KAUN PARIKSHA LEGA MERI……

अब कौन परीक्षा लेगा मेरी,

क्या वो जिससे है कटुता मेरी,

या शायद वो जिससे सब मांगूं,

या वो जिससे हैं खुशियाँ मेरी |

 

न जानो यह कम जोर प्राण हैं,

ज्वलित हृदय यह तार तार है,

दृढ़निश्चय है मेरे मन का,

आग छुपी भोलेपन की आड़ है |

 

बरसेगी ये संकल्पों की बदरी,

हृदय पिपासा अब कितनी गहरी,

बदलने को ये जीवन अपना,

अब पलटूगां तूफानों की गगरी |

 

जला सभी चंचल तस्वीरे,

तोड़ कर ये निर्बल जंजीरे |

निकल जाऊंगा महायज्ञ पर,

बदलने अपनी हस्त लकीरे |

 

छटी अज्ञान की निशा घनेरी,

अब जाग उठी है आत्मा मेरी,

वो चार कदम पर मंजिल मेरी,

अब कौन परीक्षा लेगा मेरी |

 

Atul Kumar Verma

iit2012036@iiita.ac.in

Below The Black Visor

Sunsets turning the blue sky red,
slowly the black visor is drawn.
Accompanied with colour of ambiguity, hiding the dusk,
leaving longings for dawn.

Why breeze of morning called cold wave of night?
Sweet chirping of morning birds is called night’s bad omen
Silence of old church in morning is called serenity,
But its visit at night is forbidden.

How is this colour of ambiguity composed I wonder,
relating clouds to joyous rains in morning,
and night with thunder .

Why sleep is to night
and energy to bright?
Why devils to dark
and angels to light?

What is beneath the black visor
which turns good to evil someone unveil
and tell whether its an astonishing truth,
or just another tale.

 

Apurva Srivastava

IBM2012041 (Mtech Biomedical Engineering)